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Showing posts from 2014

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जानिए कहां और कैसे जन्म लेता है पाप

पाप अज्ञानता के अंधकार में होता है। पाप का प्रमुख कारण वासना है। वासना भी अज्ञानता के कारण होती है। जहां प्रकाश है, वहीं उपासना है। जहां उपासना है, वहीं प्रेम है। प्रेम उपासना है, साधना है भक्ति के शिखर पर ज्ञान है और ज्ञान के शिखर पर प्रेम है। मनुष्य को अपना श्रम ज्ञान दीप को प्रज्वलित करने में लगाना चाहिए। इससे वासना की जगह उपासना जागृत होती है।  परमात्मा द्वारा निर्मित मंदिर में जहां उनका वास होता है, उनका दर्शन अहंकार रोकता है क्योंकि अ हंकार कभी-कभी स्वयं ईश्वर होने का दंभ भरता है। मानव का पूरा शरीर मंदिर स्वरूप है। मनुष्य का हृदय गर्भ गृह है। सिर शिखर और शिखा ध्वजा है जबकि मस्तिष्क मंदिर है जिसमें ठाकुर जी स्वयं विराजते हैं। चित में प्रज्ञा का प्रकाश, ज्ञान का दीपक जले तभी ठाकुर जी का निराकार स्वरूप दिखलाई देता है। भागवत श्रवण से चित रूपी दीपक जलाने का प्रयास मानव को करना चाहिए। मानव को अज्ञानता से लड़ना चाहिए मगर आलोचना और अज्ञानता पर चर्चा करके अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। मानव उत्साह की रंगोली सजाकर उमंग के रंगभरे, निराशा से बचे। भक्तिभाव के सन्दर्भ में नसीहत देते हुए उन

सत्य के साथ एक ये बात होना भी जरूरी है...

सत्य के साथ एक ये बात होना भी जरूरी है... धन और लक्ष्मी में बहुत अंतर होता है। इन दोनों में बहुत अंतर है। आपके पास पैसा भले ही बहुत हो लेकिन आपके पास लक्ष्मी का निवास है या नहीं ये अलग बात है। ऐसा पैसा जिसे दूसरों की सेवा, परोपकार में बांटने में कष्ट होता हो वह वह सिर्फ धन होता है और जिसे जनसेवा में खुलकर लगाया जाए, वह लक्ष्मी का रूप होता है।  परिवार में तीन सत्य होते हैं, एक मेरा सत्य, दूसरा आपका सत्य और तीसरा हमारा सत्य। परिवार में इन तीन सत्यों को आत्मसात किया जाना चाहिए।  परिवार में तीनों सत्यों का त्रिकोण जुड़ा हुआ है। सूर्य हम सबका दीपक है, जो सत्य है। मेरा सत्य अच्छी बात है, लेकिन दूसरे का सत्य भी है। जब तक हमारा सत्य नहीं होगा, तब तक दीपक नहीं जलता। सत्य के साथ प्रेम आवश्यक है। सत्य के साथ करुणा होनी ही चाहिए, यह तीनों चाहिए। जहां तक संभव हो पति सत्य कहे, पत्नी करुणा रखे, मातृ शरीर में करुणा स्वभाविक गुण है, घर में जो बच्चे हों वह प्रेम हो, इससे त्रिकोण पूरा होगा। जो परिवार का पालक हो, सुशिक्षित करे, संरक्षित करे और सबका सेवक हो, वही पिता है। जो भी बात साधना के अनुकूल पड़े, श्

Your Brain On Water

In his new book, Blue Mind, author and evolutionary biologist Wallace J. Nichols examines how being in and around water affects our emotions and cognition. It can be happy, introspective, self-referential. But it’s not necessarily the smiley-face emotion—it’s more than just happy. It’s peaceful, content. And I think that’s what makes poets write poetry, painters paint, musicians make music, and sculptors make sculpture, and why people go to the water and listen to a voice in the water, because it’s more than just happiness. How did you become interested in this subject? For scientists, the emotional aspect of what we do is off-limits; you’re supposed to check that stuff at the door. But I realized emotion was the driving force behind what I do. I became more curious about that, and I discovered neuroscientists who were asking questions about the scientific basis of emotions, but very few were asking about nature. So I started asking questions of them.  How do you turn

Be the Change

Reclaim your “functional fertility” with these yoga poses for menopause. Hot flashes, night sweats, and a low sex drive are all signs of a major hormonal change. But while our modern culture has accepted menopause as a kind of “drying up” of our hormones and fertility, that doesn’t have to be the case, says Robin Saraswati Markus, a Chinese medicine practitioner and yoga teacher. “Our ovaries can be nourished and replenished, creating a functional fertility that is about more than having a monthly cycle,” she says Markus, who holds a master’s degree in traditional Chinese medicine and a doctorate in Oriental medicine and acupuncture, is the founder of the Nourishing Life Center for Health in Asheville, North Carolina, where she specializes in women’s health and fertility. From her point of view, fertility includes giving birth to a child, but it can also mean giving birth—at any point in life—to an idea, a movement, or a dream. The unpleasant side effects of menopa

पेट दर्द की विचित्र औषधि

प्राय: भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियां ब्रजगोपियों के नाम से नाक-भौं सिकोड़ने लगतीं| इनके अहंकार को भंग करने के लिए प्रभु ने एक बार एक लीला रची| नित्य निरामय भगवान बीमारी का नाटक कर पड़ गए| नारद जी आए| वे भगवान के मनोभाव को समझ गए| उन्होंने बताया कि इस रोग की औषधि तो है, पर उसका अनुपान प्रेमी भक्त की चरण-रज ही हो सकती है| रुक्मिणी, सत्यभामा सभी से पूछा गया| पर पदरज कौन दे प्रभु को| भगवान ने कहा, "एक बार ब्रज जाकर देखिए तो|" "नारद जी श्यामसुंदर के पास से आए हैं|" यह सुनते ही श्री राधा के साथ सारी ब्रजांगनाएं बासी मुंह ही दौड़ पड़ीं| कुशल पूछने पर नारद जी ने श्रीकृष्ण की बीमारी की बात सुनाई| गोपियों के तो "वैद्य भी हैं, दवा भी है, पर अनुपान नहीं मिलता|" "ऐसा क्या अनुपान है?" "क्या श्रीकृष्ण को अपने चरणों की धूलि दे सकोगी? यही है वह अनुपान, जिसके साथ दवा देने से उनकी बीमारी दूर होगी|" "यह कौन-सी बड़ी कठिन बात है, मुनि महाराज? लो, हम पैर बढ़ाए देती हैं" "अरी यह क्या करती हो?" नारद जी घबराए, "क्या तुम यह नहीं जानतीं

Kabirji and wife Loyee

कबीर जी और लोई एक बार बारिश के मौसम में कुछ साधू- महात्मा अचानक कबीर जी के घर आ गये !  बारिश के कारण कबीर साहब जी बाज़ार  में कपडा बेचने नही जा सके और घर पर  खाना भी काफी नही था !उन्होंने  अपनी पत्नी लोई से पूछा -क्या कोई  दुकानदार कुछ आटा -दाल हमें उधार दे  देगा जिसे हम बाद में कपडा बेचकर  चुका देगे !पर एक गरीब जुलाहे  को भला कौन उधार देता जिसकी कोई  अपनी निश्चित आय भी नही थी !  लोई कुछ दुकानो पर सामान लेने गई पर  सभी ने नकद पैसे मांगे आखिर एक दुकानदार  ने उधार देने के लिये उनके सामने एक शर्त  रखी कि अगर वह एक रात उसके साथ  बितायेगी तो वह उधार दे सकता है !इस  शर्त पर लोई को बहुत बुरा तो लगा लेकिन  वह खामोश रही जितना आटा-दाल उन्हें  चाहिये था दुकानदार ने दे दिया ! जल्दी से  घर आकर लोई ने खाना बनाया और  जो दुकानदार से बात हुई थी कबीर साहब  को बता दी !  रात होने पर कबीर साहब ने लोई से  कहा कि दुकानदार का क़र्ज़ चुकाने  का समय आ गया है ; चिंता मत करना सब  ठीक हो जायेगा !जब वह तैयार हो कर  जाने लगी कबीर जी बोले क़ि बारिश  हो रही है और गली कीचड़ से भरी है तुम  कम्बल ओढ़ लो म

मेहनत का फल

राजकुमारी रोजी की खूबसूरती की हर जगह चर्चा थी | सुनहरी आंखें, तीखे नयन-नक्श, दूध-सी गोरी काया, कमर तक लहराते बाल सभी सुंदरता में चार चांद लगाते थे | एक बार की बात है | राजकुमारी रोजी को अचानक खड़े-खड़े चक्कर आ गया और वह बेहोश होकर गिर पड़ी | राजवैद्य ने हर प्रकार से रोजी का इलाज किया, पर राजकुमारी रोजी को होश नहीं आ रहा था | राजा अपनी इकलौती बेटी को बहुत चाहते थे | उस देश के रजउ नामक ग्राम में विलियम और जॉन नाम के दो भाई रहा करते थे | विलियम बहुत मेहनती और चुस्त था और जॉन अव्वल दर्जे का आलसी था | सारा दिन खाली पड़ा बांसुरी बजाया करता था | विलियम पिता के साथ सुबह खेत पर जाता, हल जोतता व अन्य कामों में हाथ बंटाता | एक दिन विलियम ने जंगल में तोतों को आदमी की भाषा में बात करते सुना | एक तोता बोला - "यहां के राजा की बेटी अपना होश खो बैठी है, क्या कोई इलाज है ?" "क्यों नहीं, वह जो उत्तर दिशा में पहाड़ी पर सुनहरे फलों वाला पेड़ है वहां से यदि कोई फल तोड़कर उसका रस राजकुमारी को पिलाए तो राजकुमारी ठीक हो सकती है |" तोते ने कहा, "पर ढालू पहाड़ी से ऊपर जाना तो बहु

Birth of Haumanji हनुमानजी का जन्म

हनुमानजी की जन्म कथा सूर्य के वर से सुवर्ण के बने हुए सुमेरु में केसरी का राज्य था। उसकी अति सुंदरी अंजना नामक स्त्री थी। एक बार अंजना ने शुचिस्नान करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किए। उस समय पवनदेव ने उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर आते समय आश्वासन दिया कि तेरे यहाँ सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा। और ऐसा ही हुआ भी। कार्तिक, कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा में अंजना के उदर से हनुमानजी उत्पन्न हए। दो प्रहर बाद सूर्योदय होते ही उन्हें भूख लगी। माता फल लाने गई। इधर लाल वर्ण के सूर्य को फल मानकर हनुमानजी उसको लेने के लिए आकाश में उछल गए। उस दिन अमावस्या होने से सूर्य को ग्रसने के लिए राहु आया था, किंतु हनुमानजी को दूसरा राहु मानकर वह भाग गया। तब इंद्र ने हनुमानजी पर वज्र-प्रहार किया। उससे इनकी ठोड़ी टेढ़ी हो गई, जिससे ये हनुमान कहलाए। इंद्र की इस दृष्टता का दंड देने के लिए पवनदेव ने प्राणिमात्र का वायुसंचार रोक दिया। तब ब्रह्मादि सभी देवों ने हनुमान को वर दिए। ब्राह्माजी ने अमितायु का, इंद्र ने वज्र से हत न होने का, सूर्य ने अपने शतांश

Arjun Ki Pratigya

महाभारत अर्जुन की प्रतिज्ञा महाभारत का भयंकर युद्ध चल रहा था। लड़ते-लड़के अर्जुन रणक्षेत्र से दूर चले गए थे। अर्जुन की अनुपस्थिति में पाण्डवों को पराजित करने के लिए द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की। अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गया। उसने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के छः चरण भेद लिए, लेकिन सातवें चरण में उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि सात महारथियों ने घेर लिया और उस पर टूट पड़े। जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर जोरदार प्रहार किया। वह वार इतना तीव्र था कि अभिमन्यु उसे सहन नहीं कर सका और वीरगति को प्राप्त हो गया। अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन क्रोध से पागल हो उठा। उसने प्रतिज्ञा की कि यदि अगले दिन सूर्यास्त से पहले उसने जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह आत्मदाह कर लेगा। जयद्रथ भयभीत होकर दुर्योधन के पास पहुँचा और अर्जुन की प्रतिज्ञा के बारे में बताया। दुर्य़ोधन उसका भय दूर करते हुए बोला-“चिंता मत करो, मित्र! मैं और सारी कौरव सेना तुम्हारी रक्षा करेंगे। अर्जुन कल तुम तक नहीं पहुँच पाएगा। उसे आत्मदाह करना पड़ेगा।” अगले दिन युद्ध शुरू हुआ। अर्जुन की आँखें जय

Dadi Maa Ki Kahaniyan # 1

उपदेशामृत ! एक बार एक स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी, भीक्षा दे दे माते!! घर से महिला बाहर आयी। उसनेउनकी झोली मे भिक्षा डाली और कहा, “महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए!” स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा।” दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी – भीक्षा दे दे माते!!  उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायीं थी, जिसमे बादाम- पिस्ते भी डाले थे, वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी। स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया। वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ाहै। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली, “महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है।” स्वामीजी बोले, “हाँ, गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।” स्त्री बोली, “नहीं महाराज,तब तो खीर ख़राब हो जायेगी । दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।” स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न?” स्त्री ने कहा : “जी महाराज !” स्वामीजी बोले, “मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा। यदि उप

भगवान विष्णु जी और माता लक्ष्मी जी की एक कहानी

भगवान विष्णु जी और माता लक्ष्मी जी की एक कहानी   एक बार भगवान विष्णु जी शेषनाग पर बेठे बेठे बोर होगये, ओर उन्होने धरती पर घुमने का विचार मन मै किया, वेसे भी कई साल बीत गये थे धरती पर आये, ओर वह अपनी यात्रा की तेयारी मे लग गये, स्वामी को तेयार होता देख कर लक्ष्मी मां ने पुछा !!आज सुबह सुबह कहा जाने कि तेयारी हो रही है?? विष्णु जी ने कहा हे लक्ष्मी मै धरती लोक पर घुमने जा रहा हुं, तो कुछ सोच कर लक्ष्मी मां ने कहा ! हे देव क्या मै भी आप के साथ चल सकती हुं???? भगवान विष्णु ने दो पल सोचा फ़िर कहा एक शर्त पर, तुम मेरे साथ चल सकती हो तुम धरती पर पहुच कर उत्तर दिशा की ओर बिलकुल मत देखना, इस के साथ ही माता लक्ष्मी ने हां कह के अपनी मनवाली। ओर सुबह सुबह मां लक्ष्मी ओर भगवान विष्णु धरती पर पहुच गये, अभी सुर्य देवता निकल रहे थे, रात बरसात हो कर हटी थी, चारो ओर हरियाली ही हरियाली थी, उस समय चारो ओर बहुत शान्ति थी, ओर धरती बहुत ही सुन्दर दिख रही थी, ओर मां लक्ष्मी मन्त्र मुग्ध हो कर धरती को देख रही थी, ओर भुल गई कि पति को क्या वचन दे कर आई है?ओर चारो ओर देखती हुयी कब उत्तर दिशा की ओर देखने लगी पता

The Birth of Sati

Once, Lord Siva was involved in a tough meditation. At that time, BrahmaDev appeared where Siva was meditating. KamDev was also there. Brahmav said, " Son, don't you see Siva is concentrating in this mediatation for years. You should find a way to make him retreat from the meditation." KamDev replied,"Father, Even my job is that. But you should do a help for me. Please create a beautiful girl. I will do the rest of the job." Brahmav created Vasanth and Malayanil. They both became KamDev's assistants. With the assistance of Vasanth and Malayanil, KamDev tried to wake Siva up. But all the efforts were in vain. Finally, depressed Malayanil withdrawn from the operation. BrahmaDev went sad hearing this. The air which came from the depressed face of BrahmaDev turned into arrow s. He gave all those arrows to KamDev to use it as weapon of love and adviced him to use it to wake Siva. KamDev with his new weapons came near