Skip to main content

Followers

जानिए कहां और कैसे जन्म लेता है पाप


पाप अज्ञानता के अंधकार में होता है। पाप का प्रमुख कारण वासना है। वासना भी अज्ञानता के कारण होती है। जहां प्रकाश है, वहीं उपासना है। जहां उपासना है, वहीं प्रेम है। प्रेम उपासना है, साधना है भक्ति के शिखर पर ज्ञान है और ज्ञान के शिखर पर प्रेम है। मनुष्य को अपना श्रम ज्ञान दीप को प्रज्वलित करने में लगाना चाहिए। इससे वासना की जगह उपासना जागृत होती है। 
परमात्मा द्वारा निर्मित मंदिर में जहां उनका वास होता है, उनका दर्शन अहंकार रोकता है क्योंकि अहंकार कभी-कभी स्वयं ईश्वर होने का दंभ भरता है। मानव का पूरा शरीर मंदिर स्वरूप है। मनुष्य का हृदय गर्भ गृह है। सिर शिखर और शिखा ध्वजा है जबकि मस्तिष्क मंदिर है जिसमें ठाकुर जी स्वयं विराजते हैं।
चित में प्रज्ञा का प्रकाश, ज्ञान का दीपक जले तभी ठाकुर जी का निराकार स्वरूप दिखलाई देता है। भागवत श्रवण से चित रूपी दीपक जलाने का प्रयास मानव को करना चाहिए। मानव को अज्ञानता से लड़ना चाहिए मगर आलोचना और अज्ञानता पर चर्चा करके अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। मानव उत्साह की रंगोली सजाकर उमंग के रंगभरे, निराशा से बचे।
भक्तिभाव के सन्दर्भ में नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि साधारण जीव को प्रभा का प्रकाश शीतलता को समाहित करना चाहिए, भय मृत्यु का शंखनाद है जबकि निर्भयता नारायण का प्रसाद है। निर्भयता प्रभु को स्वयं को समर्पित करने से आती है।
By: Shri Ramesh Bhai Ojha

Comments

Popular posts from this blog

आप जानते हैं बागेश्‍वर धाम का रहस्‍य

  पुरा कथाओं में भगवान शिव के बाघ रूप धारण करने वाले इस स्थान को व्याघ्रेश्वर तथा बागीश्वर से कालान्तर में बागेश्वर के रूप में जाना जाता है।[1] शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार इस नगर को शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छा के अनुसार बसाया था।[2][3] स्कन्द पुराण के अन्तर्गत बागेश्वर माहात्म्य में सरयू के तट पर स्वयंभू शिव की इस भूमि को उत्तर में सूर्यकुण्ड, दक्षिण में अग्निकुण्ड के मध्य (नदी विशर्प जनित प्राकृतिक कुण्ड से) सीमांकित कर पापनाशक तपस्थली तथा मोक्षदा तीर्थ के रूप में धार्मिक मान्यता प्राप्त है। ऐतिहासिक रूप से कत्यूरी राजवंश काल से (७वीं सदी से ११वीं सदी तक) सम्बन्धित भूदेव का शिलालेख इस मन्दिर तथा बस्ती के अस्तित्व का प्राचीनतम गवाह है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सन् १६०२ में राजा लक्ष्मी चन्द ने बागनाथ के वर्तमान मुख्य मन्दिर एवं मन्दिर समूह का पुनर्निर्माण कर इसके वर्तमान रूप को अक्षुण्ण रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।[4] उन्होंने बागेश्वर से पिण्डारी तक लगभग ४५ मील (७० किमी.) लम्बे अश्व मार्ग के निर्माण द्वारा दानपुर के सुदूर ग्राम्यांचल को पहुँच देने का प्रयास भी कि...

खाटूश्यामजी

श्री खाटू श्याम जी  श्री खाटू श्याम जी भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जहाँ पर बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर है। ये मंदिर करीब 1000 साल पुराना है जिसे 1720 में अभय सिंह जी द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था इस मंदिर में भीम के पौत्र और घटोत्कच के तीनों पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र बर्बरीक के सिर की पूजा होती है। जबकि बर्बरीक के धड़ की पूजा हरियाणा के हिसार जिले के एक छोटे से गांव स्याहड़वा में होती है। श्री खाटू श्याम जी भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जहाँ पर बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर है। ये मंदिर करीब 1000 साल पुराना है जिसे 1720 में अभय सिंह जी द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था[2] इस मंदिर में भीम के पौत्र और घटोत्कच के तीनों पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र बर्बरीक के सिर की पूजा होती है। जबकि बर्बरीक के धड़ की पूजा हरियाणा के हिसार जिले के एक छोटे से गांव स्याहड़वा में होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी ने द्वापरयुग में श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलयुग में उनके ...